मैं की खोज





मैं सोचती हूं बार-बार,

एक मैं में कितने मैं हैं?

एक मैं में... कितने मैं हैं?

एक जो मासूम है,

दुनिया की उलझनों से अभी अंजान है

एक जो बेबाक है,

दुनिया की तमाम रिवायतों से बेफिक्र है

एक जो आस्तीन चढ़ाये,

माथे पे पसीने की लकीरें के लिए,

ढूंढ रही है इस दुनिया में अपना एक नाम

ताकि वह यह जान सके और यह बता सके

“मैं कौन हूं।”


कैसे जानूँ मैं कौन हूँ?

हज़ार चेहरे हैं, जिन्हें लोगों ने गढ़ा है।

बिखरा हुआ, बँटा हुआ, टुकड़ों में उधार लिया,

और इन सब  को मिलाकर, मैं बनी हूं ।

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